युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 25 जून 2010

कैसे मुम्किन है मसाएल से न टकराए हयात्

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कैसे मुम्किन है मसाएल से न टकराए हयात्। कौन चाहेगा ख़मोशी से गुज़र जाये हयात् ॥ कोई तूफ़ान, कोई ज़्ल्ज़ला, कोई सैलाब, ज़िन्दगी में न अगर हो...
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गुरुवार, 24 जून 2010

खो गया मैं ये किस कल्पना में

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खो गया मैं ये किस कल्पना में। चाँद ही चाँद हैं हर दिशा में॥ मैं अमावस से सुबहें तराशूँ, घोल दो चाँदनी तुम हवा में॥ मैं पिघलता रहूं मोम बनकर...
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बुधवार, 23 जून 2010

उनवाने-गुफ़्तुगूए-दिले-दोस्ताँ न हों

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उनवाने-गुफ़्तुगूए-दिले-दोस्ताँ न हों। जीना भी हो मुहाल जो ख़ुश-फ़ह्मियाँ न हों॥ कुछ तल्ख़ियाँ भी होती हैँ शायद बहोत लतीफ़, क्या लुत्फ़ है सफ...
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ख़्वाहिशें और तमन्नाएं सभी रखते हैं

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ख़्वाहिशें और तमन्नाएं सभी रखते हैं। हम तो हर हाल में जीने की ख़ुशी रखते हैं॥ नुक्ताचीनी की बहरहाल सज़ा मिलती है, वो सम्झदार हैं जो होँटोँ क...
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मंगलवार, 22 जून 2010

क़त्ल की साज़िशों से क्या हासिल्

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क़त्ल की साज़िशों से क्या हासिल्। तुमको इन काविशों से क्या हासिल्॥ इश्क़ पाबन्द हो नहीं सकता, इश्क़ पर बन्दिशों से क्या हासिल्॥ मुझको ख़ा...
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अमृत पीकर क्या पाओगे

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अमृत पीकर क्या पाओगे। विष पी लो शिव बन जाओगे॥ पीड़ा अपनी व्यक्त न करना, लोग हँसेंगे, पछताओगे॥ चाँद बनो नीरव निशीथ में, शीतल होकर मुस्काओगे...
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सोमवार, 21 जून 2010

तुम नहीं हो तो ये तनहाई भी है आवारा

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तुम नहीं हो तो ये तनहाई भी है आवारा। जा-ब-जा शहर में रुस्वाई भी है आवारा॥ कोयलें साथ उड़ा ले गयीं आँगन की फ़िज़ा, पेड़ ख़ामोश हैं अँगनाई भी ...
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गुरुवार, 17 जून 2010

किसी का दिल कहीं कुछ भी दुखा क्या

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किसी का दिल कहीं कुछ भी दुखा क्या। हमें इस आहो-ज़ारी ने दिया क्या॥ चलो अब उस से रिश्ते तोड़ते हैं, वो समझेगा हमारा मुद्दआ क्या॥ वहाँ महशर का...
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गुरुवार, 3 जून 2010

हिन्दी में ग़ज़ल कहने का है स्वाद ही कुछ और्

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हिन्दी में ग़ज़ल कहने का है स्वाद ही कुछ और्। रचनाओं में होता है यहाँ नाद ही कुछ और्॥ आशीष दिया करती है माँ सुख से रहूँ मैं, पर मुझसे समय कर...
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गुरुवार, 20 मई 2010

लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे

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लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे। सर झुकाते नहीं ख़ुददार किसी के आगे॥ देख कर आंखों से भी कुछ नहीं कहता कोई, लब सिले रहते हैं क्यों आज बदी...
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