युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

गुरुवार, 20 मई 2010

लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे

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लोग झुक जाते हैं वैसे तो सभी के आगे। सर झुकाते नहीं ख़ुददार किसी के आगे॥ देख कर आंखों से भी कुछ नहीं कहता कोई, लब सिले रहते हैं क्यों आज बदी...
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शुक्रवार, 14 मई 2010

धूल हवाओं में शामिल है

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धूल हवाओं में शामिल है। गर्द है ऐसी जान ख़जिल है॥ सूरज की शह पाकर मौसम, दहशतगर्दी पर माइल है॥ दरिया में है शोर-अंगेज़ी, सन्नटा ओढे साहिल है॥...
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बुधवार, 12 मई 2010

खीज से जन्मे हुए शब्दों को जब भी तोलें

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खीज से जन्मे हुए शब्दों को जब भी तोलें। झिड़कियाँ माँ की मेरे कानों में अमृत घोलें॥ देखें बचपन की उन आज़ादियों की तस्वीरें, बैठें जब साथ अती...
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कहता मुक्तक और ग़ज़ल्

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कहता मुक्तक और ग़ज़ल्। दर्शाता युग की हलचल्। पढ न सकोगे मुझको तुम, अक्षर-अक्षर मेरे तरल॥ चिन्तन मेरा अमृत-कुण्ड, वाणी मेरी गंगाजल ॥ बाहर से...
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शनिवार, 8 मई 2010

अहमद फ़राज़ [14 जनवरी 1931-25 अगस्त 2008] /प्रोफ़ेसर शैलेश ज़ैदी

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अहमद फ़राज़ [14 जनवरी 1931-25 अगस्त 2008] नौशेरा में जन्मे अहमद फ़राज़ जो पैदाइश से हिन्दुस्तानी और विभाजन की त्रासदी से पाकिस्तानी थे उर्दू...
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शुक्रवार, 7 मई 2010

निशाते-दर्दे-पैहम से अलग हैं

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निशाते-दर्दे-पैहम से अलग हैं। ख़ुशी के ज़ाविए ग़म से अलग हैं॥ दिलों को रोते कब देखा किसी ने, ये आँसू चश्मे-पुरनम से अलग हैं॥ तलातुम-ख़ेज़िया...

सहूलतें सभी आसाइशों की यकजा हैं

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सहूलतें सभी आसाइशों की यकजा हैं। हमारे बच्चे घरों में भी रह के तनहा हैं॥ तमाम रिश्ते ही आपस के जैसे टूट गये, तकल्लुफ़ात की बन्दिश में अहले-द...
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गुरुवार, 6 मई 2010

सफ़र का सारा मंज़र सामने था

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सफ़र का सारा मंज़र सामने था। कहीं बच्चे कहीं घर सामने था्। हमें जो ले गया मक़्तल की जानिब, थका-माँदा वो लश्कर सामने था॥ मिली थी नोके-नैज़ा प...
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बुधवार, 5 मई 2010

सरों से ऊँची फ़सीलें हैं क्या नज़र आये

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सरों से ऊँची फ़सीलें हैं क्या नज़र आये। न जाने किसकी ये चीख़ें हैं क्या नज़र आये॥ उमीदो-बीम के जंगल में हूँ घिरा हुआ मैं, तमाम शाख़ें-ही-शाख...
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सोमवार, 3 मई 2010

मैं ग़ज़ल क्यों कहता हूं / शैलेश ज़ैदी

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मैं ग़ज़ल क्यों कहता हूं ग़ज़ल अरबी भाषा का शब्द अवश्य है किन्तु ग़ज़ल का प्रारंभ अरबी भाषा में नहीं हुआ।वैसे भी प्राचीन परिभाषाओं पर आधारि...
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