युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शनिवार, 31 जनवरी 2009

जड़ें ग़मों की दिलों से उखाड़ फेंकते हैं.

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जड़ें ग़मों की दिलों से उखाड़ फेंकते हैं. गुलों की मस्ती के मौसम को यूँ भी देखते हैं. हमारे दिल की सदाक़त है साफ़ पानी सी, हम इसको चेहरए-रब का...
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कबीर-काव्य : इस्लामी आस्था एवं अंतर्कथाएँ / प्रो. शैलेश ज़ैदी [क्रमशः 1]

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कबीर की इस्लामी आस्था आजके आम मुसलमानों की तरह निश्चित रूप से नहीं थी।वह सूफी विचारधारा की उस क्रन्तिपूर्ण व्याख्या से प्रेरित थी जो उनके वि...
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शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

उस शख्स को भी फ़िक्रो-नज़र की तलाश है.

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उस शख्स को भी फ़िक्रो-नज़र की तलाश है. जिसको बस एक छोटे से घर की तलाश है. आंखों में उसकी, देखिये, बेचैनियाँ हैं साफ़, शायद नदी को, ज़ादे-सफ़र की ...
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ये असासा है गाँव का महफूज़.

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ये असासा है गाँव का महफूज़. ज़ीस्त में है अभी हया महफूज़. बंदगी जब नहीं तो कुछ भी नहीं, बंदगी है, तो है खुदा महफूज़. उसकी बेगानगी सलामत हो, म...
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गुरुवार, 29 जनवरी 2009

देखिये पढ़कर 'उपनिषद', सारगर्भित हैं विचार.

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देखिये पढ़कर 'उपनिषद', सारगर्भित हैं विचार. दार्शनिकता की नहीं है थाह, मंथित हैं विचार. खो गया मैं जब कभी 'कुरआन' की आयात मे...
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बुधवार, 28 जनवरी 2009

कुछ तो हँसी-मजाक करें तितलियों के साथ.

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कुछ तो हँसी-मजाक करें तितलियों के साथ. पूछें कभी कि रिश्ते हैं क्या-क्या गुलों के साथ. हैरत ये है कि सीता-स्वयम्बर के जश्न में, आये हुए हैं ...
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दिखावे से हैं बहुत दूर सब, विचारों में.

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दिखावे से हैं बहुत दूर सब, विचारों में. मिठास होती है ग्रामीण संस्कारों में. नलों ने शहरों के पनघट सभी उजाड़ दिए, बिचारी गोपियाँ मिलती हैं अ...

मैं उसके पास से होकर हताश, लौट आया.

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मैं उसके पास से होकर हताश, लौट आया. वो कर रहा था सभी को निराश, लौट आया. किसी ने मुझसे खरीदीं न सूर्य की किरनें, किसी को था न अपेक्षित प्रकाश...
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गाँव के पोखर से लाते थे चमकती मछलियाँ.

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गाँव के पोखर से लाते थे चमकती मछलियाँ. अधमुई, बेजान, निर्वासित, तड़पती मछलियाँ. ये जलाशय राजनीतिक है, इसे छूना नहीं, हमने देखी हैं यहाँ शोले...
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मंगलवार, 27 जनवरी 2009

नदी कुछ थम गई, सेलाब में थोडी कमी आयी।

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नदी कुछ थम गई, सेलाब में थोडी कमी आयी। उजड़ते गाँव में आशा की फिर से रोशनी आयी। दरो-दीवार सब नैराश्य में डूबे मिले मुझको, तुम्हें क्या छोड़ आ...
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