युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

मंगलवार, 30 सितंबर 2008

करतब कमाल का था

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करतब कमाल का था, तमाशे में कुछ न था। बच्चे के टुकड़े कब हुए, बच्चे में कुछ न था। सब सुन रहे थे गौर से, दिलचस्पियों के साथ, फ़न था सुनाने वाले ...
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दिल के सहरा में / नूर बिजनौरी

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दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं। इतना रोया हूँ कि अब आँख में आंसू भी नहीं। इतनी बेरहम न थी ज़ीस्त की दोपह्र कभी, इन खराबों में कोई सा...
सोमवार, 29 सितंबर 2008

सोंच और विचार

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एक जैसी सोंच के बावजूद कितने भिन्न हैं मेरे और उसके विचार! उसे मेरे शब्दों में आक्रोश की झलक मिलती है, हो सकता है वह ठीक हो, हो सकता है मेरा...
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कहीं तुम अपनी किस्मत / सलीम कौसर

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कहीं तुम अपनी किस्मत का लिखा तब्दील कर लेते। तो शायद हम भी अपना रास्ता तब्दील कर लेते। अगर हम वाकई कम हौसला होते मुहब्बत में, मरज़ बढ़ने से ...
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रविवार, 28 सितंबर 2008

प्रोफ़ेसर मुशीरुल हसन के वक्तव्य पर इतनी बेचैनी क्यों ?

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जामिया मिल्लिया के कुलपति प्रोफ़ेसर मुशीरुल हसन अभी कल तक हिन्दी मिडिया की दृष्टि में प्रगतिशील भी थे और राष्ट्रवादी भी, किंतु बटला हाउस से ज...
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मक्के की सरज़मीन पे

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मक्के की सरज़मीन पे, काबा नहीं मिला। देखा जो दिल में झाँक के, सब कुछ यहीं मिला। गुम हो गया था मैं भी ज़माने की भीड़ में, तनहा हुआ तो राज़े-दि...
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अब क्या गिला करें / सैफ़ जुल्फी

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अब क्या गिला करें की मुक़द्दर में कुछ न था। हम गोता-ज़न हुए तो समंदर में कुछ न था। दीवाना कर गई तेरी तस्वीर की कशिश, चूमा जो पास जाके तो पै...
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शनिवार, 27 सितंबर 2008

घटाओं में उभरते हैं

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घटाओं में उभरते हैं कभी नक्शो-निगार उसके। कभी लगता है जैसे हों गली-कूचे, दयार उसके। मेरे ख़्वाबों में आ जाती हैं क्यों ये चाँदनी रातें, हथेली...
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हैरत-ज़दा है सारा जहाँ

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हैरत-ज़दा है सारा जहाँ देख के मुझे। क्या गहरी नींद आयी है खंजर तले मुझे। मैं सुब्हे-रफ़्ता की हूँ शुआए-फुसूं-तराज़, लगते नहीं हैं शाम के तेवर...
शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

खामोश होगी कब ये ज़ुबाँ

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खामोश होगी कब ते ज़ुबाँ कुछ नहीं पता। बदलेगा कब निज़ामे-जहाँ कुछ नहीं पता। कब टूट जाए रिश्तए-जाँ कुछ नहीं पता। कुछ कारे-खैर कर लो मियाँ कुछ नह...
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