सोमवार, 29 सितंबर 2008

सोंच और विचार

एक जैसी सोंच के बावजूद
कितने भिन्न हैं मेरे और उसके विचार!
उसे मेरे शब्दों में आक्रोश की झलक मिलती है,
हो सकता है वह ठीक हो,
हो सकता है मेरा आहत मन
उसे न छू सका हो.
और यह भी हो सकता है,
कि मैंने ही उसे गलत समझा हो,
ग़लत सन्दर्भों में रखकर देखा हो.
किंतु, सोंचता हूँ मैं-
कि जहाँ-जहाँ मेरा मन आहत होता है,
उसका क्यों नहीं होता ?
वह भी तो मेरी ही तरह सोंचता है।
*********************

1 टिप्पणी:

  1. जहाँ-जहाँ मेरा मन आहत होता है,
    उसका क्यों नहीं होता ?
    वह भी तो मेरी ही तरह सोंचता है।

    -बहुत उम्दा, क्या बात है!

    जवाब देंहटाएं