युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रविवार, 24 अगस्त 2008

आख़िर क्यों हुआ ऐसा ! / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

›
बरहना हो गये सब ख्वाब, आख़िर क्यों हुआ ऐसा ? बता मुझ को दिले-बेताब, आख़िर क्यों हुआ ऐसा ? निकलती आई थी अब तक जो तूफानों की ज़द से भी वो कश्त...
1 टिप्पणी:
सोमवार, 11 अगस्त 2008

अब ये बेहतर है कि हम तोड़ दें सारे रिश्ते / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

›
[ 1 ] अब ये बेहतर है कि हम तोड़ दें सारे रिश्ते देर-पा होते नहीं प्यार में झूठे रिश्ते अपने हक़ में कोई मद्धम सा उजाला पाकर रास्ता अपना बदल ल...
3 टिप्‍पणियां:
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
Blogger द्वारा संचालित.