युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / जब भी खिलते हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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शनिवार, 8 नवंबर 2008

जब भी खिलते हैं तो इस तरह महकते हैं गुलाब.

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जब भी खिलते हैं तो इस तरह महकते हैं गुलाब. मेरी बेख्वाब सी आंखों में उतर आते हैं ख्वाब. ******* झाँक कर देखता हूँ ख़ुद को तो लगता है मुझे, म...
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