युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / हवा का रुख़ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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सोमवार, 8 मार्च 2010

हवा का रुख़ बदल जाता है अक्सर

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हवा का रुख़ बदल जाता है अक्सर। वो पहलू से निकल जाता है अक्सर्॥ ये सीना भी कोई आतश-फ़िशाँ है, यहाँ लावा पिघल जाता है अक्सर्॥ भड़कती है कुछ ऐ...
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