सोमवार, 8 मार्च 2010

हवा का रुख़ बदल जाता है अक्सर

हवा का रुख़ बदल जाता है अक्सर।
वो पहलू से निकल जाता है अक्सर्॥
ये सीना भी कोई आतश-फ़िशाँ है,
यहाँ लावा पिघल जाता है अक्सर्॥
भड़कती है कुछ ऐसी आग दिल में,
मेरा दामन भी जल जाता है अक्सर्॥
तबाही की तरफ़ जाकर ये मौसम,
अचानक ख़ुद सँभल जाता है अक्सर्॥
किसी ख़ित्ते में हो कोई धमाका,
हमारा दिल दहल जाता है अक्सर॥
हमें होती नहीं मुत्लक़ ख़बर तक,
ज़माना चाल चल जाता है अक्सर॥
अभी से दिल को यूँ छोटा न कीजे,
बुरा वक़्त आके टल जाता है अक्सर॥
सुलूक उसका बहोत अच्छा है, लेकिन,
ज़ुबाँ ऐसी है, खल जाता है अक्सर॥
कहीं जाऊँ, उसी की रह्गुज़र पर,
क़दम क्यों आजकल जाता है अक्सर॥
बनाने के लिए तस्वीर उस की,
ख़याल उसका मचल जाता है अक्सर॥
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रुख=दिशा । आतश-फ़शाँ=ज्वालामुखी।ख़ित्ता=भूभाग,क्षेत्र्।मुत्लक़=तनिक भी।सुलूक=व्यवहार।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये सीना भी कोई आतश-फ़िशाँ है,
    यहाँ लावा पिघल जाता है अक्सर्॥
    हमे होती नही-----
    बनाने के लिये तस्वीर -----
    वाह क्या शेर कहे हैं लाजवाब। गज़ल है।धन्यवाद उर्दू शब्दों के अर्थ के लिये।

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  2. bahut sundar
    bhut sahi likha hai aap ne
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    par aap ka swagat hai

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  3. bhut sahi likha hai aap ne
    thank you
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    par aap ka swagat hai

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