शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

प्रेम के संगीत की धुन भी अलग है साज़ भी.

प्रेम के संगीत की धुन भी अलग है साज़ भी.
मन में कर लेती है घर इसकी मधुर आवाज़ भी.
प्रेमियों की आह से खाली ये दुनिया कब हुई,
सब को भाती है ये मीठी लय भी, ये अन्दाज़ भी.
मय की तलछट पीने वालों में हैं ऐसे भी पुरूष,
जिनकी जीवन-साधना है ब्रह्म की हमराज़ भी.
सांसारिक मोह-माया को जला देते हैं रिंद,
गुदडियों में लाल की सूरत हैं ये जांबाज़ भी.
थाह उनके ज्ञान की पाना सरल होता नहीं,
जिनमें है स्थैर्य भी, रखते हैं जो परवाज़ भी.
ज़िन्दगी भी एक मधुशाला सी लगती है हमें,
पीने वालों का यहीं अंजाम भी, आगाज़ भी.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम के संगीत की धुन भी अलग है साज़ भी.
    मन में कर लेती है घर इसकी मधुर आवाज़ भी.
    प्रेमियों की आह से खाली ये दुनिया कब हुई,
    सब को भाती है ये मीठी लय भी, ये अन्दाज़ भी.
    वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

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  2. बहोत ही मुश्किल काफिये और रदीफ़ के साथ बहोत ही खूबसूरती से आपने हक़ अदा किया है बहोत ही शानदार ग़ज़ल ... ढेरो बधाई आपको साहब...


    अर्श

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  3. बहोत ही मुश्किल रादिफो-काफिये पे बहोत ही सुंदर हक़ अदा किया है आपने ढेरो बधाई कुबूल करें आप....


    अर्श

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