संवारते थे मेरे स्वप्न मशवरे देकर.
चले गए वो सभी मित्र हौसले देकर.
******
ये बात सच है कि मैं दो क़दम बढ़ा न सका,
खुशी मिली मुझे औरों को रास्ते देकर.
*******
दुखों का काफ्ला ठहरा था मेरे घर आकर,
बिदा हुआ तो गया मुझको रतजगे देकर.
*******
ये सरहदों का तिलिस्मी स्वभाव कैसा है,
ये हँसता रहता है मुद्दे नये-नये देकर.
*******
वो लेके आया बसंती हवाओं की खुशबू,
जुदा हुआ वो मुझे ज़ख्म कुछ हरे देकर.
*******
खुली है खिड़कियाँ उतरेगा चाँद कमरे में,
मैं उसको रोकूंगा कुछ ख्वाब चुलबुले देकर.
**************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
sanvaarte the mere-----bahut hi badiyaa abhivyakti hai
जवाब देंहटाएंsunder rachna . badhai.
जवाब देंहटाएं'ये बात सच है कि मैं दो क़दम बढ़ा न सका,
जवाब देंहटाएंखुशी मिली मुझे औरों को रास्ते देकर.'
- सकारात्मक सोच. साधुवाद.
मतला तो कमाल का है साथ में शे'र तो चर्चंद लगा रहे है...बहोत बढ़िया लिखा है आपने...ढेरो बधाई कुबूल करें...
जवाब देंहटाएंअर्श