अब ये आश्वासन न दो, परिचित हैं सब अच्छी तरह.
तुमने अत्याचार ढाये, बे-सबब अच्छी तरह.
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आँधियों में पेड़ गिर जाते तो कोई दुख न था,
हमने आंखों से है देखा ये गज़ब अच्छी तरह.
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भुखमरी, दुख-दर्द, पीड़ा, आत्म हत्या से किसान,
कुछ बताओगे कि होंगे मुक्त कब अच्छी तरह.
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औपचारिकता के संबंधों में आस्वादन कहाँ,
मुझसे मिलना, प्यार जागे मन में जब अच्छी तरह.
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लक्ष्मी को पूजने का स्वाद चखने के लिए
दौड़ते हैं लोग जाने को अरब अच्छी तरह.
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हम तो गीदड़-भभकियों को भी समझ लेते थे सच,
वास्तविकता क्या है ये रौशन है अब अच्छी तरह.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
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