हत्याएं करके उसने जो धोये हैं अपने हाथ.
इतिहास के लहू में डुबोये हैं अपने हाथ.
निष्ठाएं बन न पाएंगी संपत्ति आपकी,
निष्ठाओं ने अभी नहीं खोये हैं अपने हाथ.
उन आंसुओं में ऐसी कोई बात थी ज़रूर,
उनसे स्वयं निशा ने भिगोये हैं अपने हाथ.
कैसा भी क्रूर हो वो न बच पायेगा कभी,
इन हादसों में जिसने समोए हैं अपने हाथ.
शायद यही श्रमिक के है जीवन का फल्सफ़ा,
कन्धों पे उसने रोज़ ही ढोये हैं अपने हाथ.
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'निष्ठाओं ने अभी नहीं खोये हैं अपने हाथ'
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर! यही चीज़ तो लड़ने का हौसला देती है। अपना एक शेर आपकी नज़र-
हर अक़ीदा फ़िजूल बात मगर,
बात तो बात है! निभानी है।