स्वप्न सीमित हों तो ये दुनिया बहुत छोटी सी है.
वो सुखी हैं जिनकी हर इच्छा बहुत छोटी सी है.
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हम नहीं ले पाते कुछ निर्णय उलझते रहते हैं,
जबकि मन में जो भी है दुविधा, बहुत छोटी सी है.
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गर्भ में पीड़ा के जाकर हम कभी देखें अगर,
उसकी, मेरी, आपकी पीड़ा बहुत छोटी सी है.
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बच्चियों का लोग कर देते हैं शैशव में विवाह,
कौन समझाए, अभी कन्या बहुत छोटी सी है.
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कैसे उद्वेलित वो कर सकते हैं जनता के विचार,
जिनकी चिंतन-शक्ति की सीमा बहुत छोटी सी है.
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ज्ञान अर्जित करना भी अपने में है इक साधना,
मूर्ख हैं वो जिनकी जिज्ञासा बहुत छोटी सी है.
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जाम भी, साकी भी, मय भी और मयखाना भी मैं,
मैं सुखी हूँ, मेरी मधुशाला बहुत छोटी सी है.
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गिडगिडा कर आह भरते हैं वही सबके समक्ष,
जानते हैं खूब जो विपदा बहुत छोटी सी है.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
बहुत सुंदर लिखा...बधाई।
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