ज़मीन गुम थी कहीं, आसमान गायब था.
वुजूद होके मेरा बेनिशान, गायब था.
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हमें अज़ीज़ थीं फिरका-परस्तियाँ इतनी,
हमारे नक्शे से हिन्दोस्तान गायब था.
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सुबह मैं निकला था तो घर भी था मकान भी था,
जो लौटा शाम को घर था मकान गायब था.
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कहा था उसने कि नफ़रत को यूँ फ़रोग न दो,
ख़बर छपी तो ये सारा बयान गायब था.
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कबूतरों का था जमघट अभी यहाँ कल तक,
चलीं जो गोलोयाँ, भरकर उड़ान, गायब था.
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बनाया था जिसे उसने बहोत मुहब्बत से,
खुली जो आँख तो उसका जहान गायब था.
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चला था लेके मैं उस कारवान को हमराह,
अकेला रह गया मैं, कारवान गायब था.
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हम एक होके शगुफ़्ता-मिज़ाज लगते थे,
हमारे चेहरों से वहमो-गुमान गायब था.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
good!
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जवाब देंहटाएं'कहा था उसने…'
बहुत ख़ूब! बहुत ही ख़ुब!