हम नहीं कहते हमारा साथ चलकर दीजिये.
मोरचों पर प्रोत्साहन तो निरंतर दीजिये.
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मैं कला का हूँ पुजारी, आप हैं जीवित कला,
अपने सौन्दर्यानिरूपण से मुझे तर दीजिये.
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भूख से ये बस्तियां होंगी भला कब तक तबाह,
अब न हो उपवास, कुछ ऐसी कृपा कर दीजिये.
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और कुछ दें, या न दें, इतना तो कर सकते हैं आप,
माँगने वाले की झोली प्यार से भर दीजिये.
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ज़िन्दगी है अब किराए के मकानों की तरह,
उसको सस्ती क़ीमतों में कुछ नये घर दीजिये.
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एक हलकी सी धमक से आपको लगता है डर,
जब नपुंसक है तो फिर ओखल में क्यों सर दीजिये.
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अंग-रक्षक साथ हैं, इतना है क्यों प्राणों से मोह,
बांधिए सर पर कफ़न दुश्मन को टक्कर दीजिये.
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गाँव से भरकर उडानें आप दिल्ली तक गए,
वो भी उड़ने में है सक्षम, उसको भी पर दीजिये.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
अंग-रक्षक साथ हैं, इतना है क्यों प्राणों से मोह,
जवाब देंहटाएंबांधिए सर पर कफ़न दुश्मन को टक्कर दीजिये।
बहुत सही कहा आपने।