किस दिशा में जा रहे हैं हम, पता हमको नहीं.
राह कैसी है, समय कहता है ये पूछो नहीं.
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डगमगाएं पाँव तो, अच्छा है घर में ही रहो,
चल पडो तो, मुडके फिर पीछे कभी देखो नहीं.
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वह महत्त्वाकांक्षी है तो बुरा लगता है क्यों,
आगे बढ़ने की तमन्ना सच कहो किसको नहीं.
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दुख भरी इस रात में तुमने दिया है मेरा साथ,
रात भर जागे हो तारो, और अब जागो नहीं.
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हम में क्या अनुबंध था सब पर प्रकट करते हो क्यों,
कुछ भरम रक्खो, रहस्यों को तो यूँ बांटो नहीं.
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बात कड़वी भी हो तो सोचो है उसमें तथ्य क्या,
भावनाओं के तराज़ू पर उसे तोलो नहीं.
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कृष्ण ने दारिद्र्य का द्विज के किया कितना ख़याल,
प्रेम संबंधों को समझो, अर्थ से आंको नहीं.
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गैर कहकर उसको ठुकरा दोगे तो पछताओगे,
उसको अपना लो, करो मत देर, कुछ सोचो नहीं.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
बहुत सुंदर रचना...बधाई।
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