रविवार, 2 नवंबर 2008

गुफ्तो-शुनीद से भी कोई फ़ायदा नहीं.

गुफ्तो-शुनीद से भी कोई फ़ायदा नहीं।
ग़म दूसरों का आज कोई बांटता नहीं।
मज़हब का मोल-भाव है बाज़ार में बहोत,
इंसानियत के दर्द की होती दवा नहीं।
करते हैं इत्तेहाद की बातें सभी मगर
आपस में दिल किसी का किसी से मिला नहीं।
वो तो हमारे मुल्क की मज़बूत हैं जड़ें,
वरना ख़ुद इसके बेटों ने क्या-क्या किया नहीं।
कुछ इस क़दर सियासी खुदाओं में है कशिश,
खालिक पे अब भरोसा किसी को रहा नहीं।
होती है यूँ तो इश्को-मुहब्बत की बात भी,
लेकिन कोई सुरूर, कोई ज़ायका नहीं।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. itani achhi ghazal! badhaai dost,
    वो तो हमारे मुल्क की मज़बूत हैं जड़ें,
    वरना ख़ुद इसके बेटों ने क्या-क्या किया नहीं.
    bahoot pasand aayi

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  2. होती है यूँ तो इश्को-मुहब्बत की बात भी,
    लेकिन कोई सुरूर, कोई ज़ायका नहीं.

    सुंदर ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाई .. साधुवाद

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