गुफ्तो-शुनीद से भी कोई फ़ायदा नहीं।
ग़म दूसरों का आज कोई बांटता नहीं।
मज़हब का मोल-भाव है बाज़ार में बहोत,
इंसानियत के दर्द की होती दवा नहीं।
करते हैं इत्तेहाद की बातें सभी मगर
आपस में दिल किसी का किसी से मिला नहीं।
वो तो हमारे मुल्क की मज़बूत हैं जड़ें,
वरना ख़ुद इसके बेटों ने क्या-क्या किया नहीं।
कुछ इस क़दर सियासी खुदाओं में है कशिश,
खालिक पे अब भरोसा किसी को रहा नहीं।
होती है यूँ तो इश्को-मुहब्बत की बात भी,
लेकिन कोई सुरूर, कोई ज़ायका नहीं।
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
itani achhi ghazal! badhaai dost,
जवाब देंहटाएंवो तो हमारे मुल्क की मज़बूत हैं जड़ें,
वरना ख़ुद इसके बेटों ने क्या-क्या किया नहीं.
bahoot pasand aayi
होती है यूँ तो इश्को-मुहब्बत की बात भी,
जवाब देंहटाएंलेकिन कोई सुरूर, कोई ज़ायका नहीं.
सुंदर ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाई .. साधुवाद