तारीख की किताबों में तब्दीलियाँ हुईं.
नफ़रत की दाग़-बेल पड़ी, तल्खियां हुईं.
*******
आया जब इक़तिदार में, बोये वो उसने बीज,
बदबूएँ जिनकी ज़ह्न पे बारे-गरां हुईं.
*******
खूं-रेज़ियों से कुछ ये ज़मीं लाल हो गई,
मजरूह कुछ शऊर की भी वादियाँ हुईं.
*******
तहजीब दाग-दाग थी, खतरे में था वुजूद,
इस तर्ह इन्तक़ाम की फ़िकरें जवाँ हुईं.
*******
दहशत-गरी के फैल गये पाँव हर तरफ़,
जानें गयीं, जहान में रुसवाईयाँ हुईं.
*******
तक़रीरें गर्म-गर्म हुईं शह्र-शह्र में,
कुछ दुख्तराने-कौम भी आतश-फ़िशां हुईं.
*******
‘जाफ़र’ वतन के चाहने वाले लरज़ गये,
जो कोशिशें थीं प्यार की सब रायगाँ हुईं.
**************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएं