परिंदों की दरख्तों से हुई थी गुफ्तुगू क्या-क्या.
फ़िज़ा सरगोशियाँ करती रही कल चार सू क्या-क्या.
वो ताक़तवर हैं, नाज़ुक वक़्त है, दुश्मन हवाएं हैं,
उन्हें हक़ है, वो कह जाते हैं सबके रू-ब-रू क्या-क्या.
नशे में हो कोई जब, होश की बातें नहीं करते,
असर मय का है, टूटेंगे अभी जामो-सुबू क्या-क्या.
परीशां कर रहे हैं, रोज़ नाहक हम गरीबों को,
बताएं तो सही आख़िर उन्हें है जुस्तुजू क्या-क्या.
सितम, जोरो-जफ़ा, दहशत, तशद्दुद, साज़िश-आरायी,
खुदा ही जनता है और भी है उनकी खू क्या-क्या.
हम अपने शह्र में रुसवा हुए इसका नहीं शिकवा,
हमें गम है, हमें इस शह्र से थी आरजू क्या-क्या.
**********************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
सितम, जोरो-जफ़ा, दहशत, तशद्दुद, साज़िश-आरायी,
जवाब देंहटाएंखुदा ही जनता है और भी है उनकी खू क्या-क्या.
हम अपने शह्र में रुसवा हुए इसका नहीं शिकवा,
हमें गम है, हमें इस शह्र से थी आरजू क्या-क्या.
bahtreen ...bahut sunder
वाह ! क्या बात है !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंसितम, जोरो-जफ़ा, दहशत, तशद्दुद, साज़िश-आरायी,
खुदा ही जनता है और भी है उनकी खू क्या-क्या.
हम अपने शह्र में रुसवा हुए इसका नहीं शिकवा,
हमें गम है, हमें इस शह्र से थी आरजू क्या-क्या.
वो ताक़तवर हैं, नाज़ुक वक़्त है, दुश्मन हवाएं हैं,
जवाब देंहटाएंउन्हें हक़ है, वो कह जाते हैं सबके रू-ब-रू क्या-क्या.
--वाह!! क्या बात है-आनन्द आ गया.
बहुत सुंदर. आज के माहौल में देखा जाय तो और भी सुंदर.
जवाब देंहटाएं