बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

हरेक शख्स का अपना निसाब होता है

हरेक शख्स का अपना निसाब होता है।
मज़े उसी के हैं जो कामयाब होता है।
शराफ़तों से कहाँ ज़िन्दगी गुज़रती है,
यक़ीन कीजिये जीना अज़ाब होता है।
वो मोती सीप के सीने से जो निकलता है,
उसी के चेहरे पे कुदरत का आब होता है।
जिसे ज़माने की रफ़तार का पता ही न हो,
वो मेरे जैसा ही खाना-ख़राब होता है।
सिवाय उसके, किसी की ज़रा भी फ़िक्र नहीं,
न जाने कैसा ये दौरे-शबाब होता है।
कभी वो चुभता है काँटों की तर्ह सीने में,
कभी खिला हुआ मिस्ले-गुलाब होता है।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. शराफ़तों से कहाँ ज़िन्दगी गुज़रती है,
    यक़ीन कीजिये जीना अज़ाब होता है।
    वो मोती सीप के सीने से जो निकलता है,
    उन्हीं के चेहरे पे कुदरत का आब होता है।

    khoob kaha janab
    bahut khoob

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  2. वाह ! bahut sundar ! लाजवाब लिखा है आपने.aabhaar .

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  3. सिवाय उसके, किसी की ज़रा भी फ़िक्र नहीं,
    न जाने कैसा ये दौरे-शबाब होता है।
    कभी वो चुभता है काँटों की तर्ह सीने में,
    कभी खिला हुआ मिस्ले-गुलाब होता है।
    लाजवाब लिखा है

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