हैराँ हूँ कि ये कौन सा दस्तूरे-वफ़ा है.
तू मिस्ले-रगे-जाँ है तो क्यों मुझसे जुदा है.
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गर अहले-नज़र है तो नहीं तुझको ख़बर क्यों,
पहलू में तेरे कोई ज़माने से खड़ा है.
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मैं शहरो-बियाबाँ में तुझे ढूंढ चुका हूँ,
क्या जाने तू किस हुज्लाए-पिन्हाँ में छुपा है.
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हम रखते हैं दावा कि हमें क़ाबू है दिल पर,
तू सामने आजाये तो ये बात जुदा है.
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ग़म है कि मुसलसल उसी शिद्दत से है जारी,
यूँ कहने को इस उम्र का हर लम्हा नया है.
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क्यों जागे हुए शहर में तनहा है हरेक शख्स,
ये रौशनी कैसी है कि साया भी जुदा है.
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महसूस किया है कभी तूने भी वो खंजर,
ग़म बनके जो हर शख्स के सीने में गडा है.
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ठहराए उसे कैसे कोई अर्श जफ़ा-केश,
जो मुझसे अलग रहके भी हमराह चला है.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
बहुत बढिया!
जवाब देंहटाएंहम रखते हैं दावा कि हमें क़ाबू है दिल पर,
तू सामने आजाये तो ये बात जुदा है.
महसूस किया है कभी तूने भी वो खंजर,
जवाब देंहटाएंग़म बनके जो हर शख्स के सीने में गडा है.
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ठहराए उसे कैसे कोई अर्श जफ़ा-केश,
जो मुझसे अलग रहके भी हमराह चला है.
ये कुछ लाइने बहुत ही सुन्दर लगी ।