शुक्रवार, 9 मई 2008

कोरियाई कवि कू सांग' की दो कविताएं


परिचय


कू सांग ( 1919-2004 ) का जन्म सिउल (seoul ) में हुआ था. जब वह छोटा था उसका पूरा परिवार उत्तरी-पूर्वी शहर वानसन ( wonsan ) में आ गया था जहाँ वह बड़ा हुआ. उत्तरी कोरिया में उसने एक पत्रकार और लेखक के रूप में ख्याति अर्जित की. किंतु 1945 में वह दक्षिण में जाने के लिए बाध्य हो गया. कारण यह था की उसने कम्युनिस्ट आदर्शों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उसकी कविता परिष्कृत प्रतीकात्मकता और कृत्रिम अभिव्यंजना को स्वीकार नहीं करती. वह उन पाठको के मध्य अत्यधिक लोकप्रिय रहा जो ज़िंदगी को उसके अनिवार्य अर्थों में देखने के इच्छुक हैं. सरलता और सहजता उसके काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है.


[ 1 ] नया वर्ष


क्या जिस किसी ने भी देखा नया वर्ष


और उसकी नई सुबह


अपनी ही आंखों से नहीं देखा ?
मरे लिए है यह रहस्य का स्रोत


कि तुम स्वयं प्रदूषित कर देते हो प्रत्येक दिन


और उसे बदल देते हो काले जट कूड़ा-करकट में


क्या हर किसी ने नहीं देखा कबाडे जैसा दिन


और चीथडा बनी घडियाँ ?
यदि तुम स्वयं नहीं बनते नये


तुम नहीं कर सकते स्वागत नयी सुबह का


नये की तरह


जान लो, तुम कभी नहीं कर पाओगे स्वागत


नये दिन का नये की तरह.
यदि तुम्हारे ह्रदय की सरलता


एक बार भी पुष्पित हो जाय


तुम जी सकोगे नये वर्ष को नये की तरह.



[ 2 ] बडों की दुनिया


मत उड़ाओ मेरा मजाक़ और मत पूछो


कि तुम इतना क्यों डूबे रहते हो विचारों में ?


यह प्रश्न तुम्हारे जैसों को शोभा नहीं देता.
कारण जानना चाहते हो तो सुनो


मैं सदमा-ग्रस्त और गूंगा हो गया हूँ


और एकदम मौन,


शब्दों के खो जाने की वजह से.
यह सच है, बिल्कुल सच


कि आप वयस्क लोग जिसे ज़िंदगी कहते हैं,


वह अटी पड़ी है ऊपर से नीचे तक झूठ से.
आप न्याय की गुहार लगाते हैं


जबकि स्वयं आपका व्यवहार अन्याय पूर्ण होता है,


आपके होंठों पर प्यार की बातें होती हैं


जबकि घृणा करते हैं आप एक दूसरे से


आप शांति की वकालत करते हैं


जबकि आप आपस में लड़ते हैं


और जानें लेते हैं एक दूसरे की.
मुझे भय है कि मैं बहुत रूखा हो गया हूँ


किंतु, जैसा कि किसी अन्य ने कहा है -
जबतक कि तुम दुबारा


एक बच्चे का ह्रदय न प्राप्त कर लो


तुम नहीं प्रवेश कर सकते स्वर्ग की बादशाहत में


ठीक उसी प्रकार


यदि तुम दुबारा नहीं प्राप्त कर लेते बच्चे का ह्रदय


तुम नहीं निकल सकते


अपनी झूठी दुनिया के उस घेरे से


जो धंसाता चला जाता है तुम्हेंअपने भीतर.


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अनुवाद एवं प्रस्तुति : शैलेश जैदी

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