युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

देखो ये बातें सच्ची हैं

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देखो ये बातें सच्ची हैं। तहज़ीबें मिटती रहती हैं॥ सूरज तो बेहिस होता है, ख़्वाब ज़मीनें ही बुनती हैं॥ चाँद की मिटटी छू कर देखो, उसकी आँखें भ...
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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

ख़्वबों से थक जाएं पलकें

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ख़्वबों से थक जाएं पलकें। कितना बोझ उठाएं पलकें॥ दिल की तमन्ना बर आने पर, झूमें नाचें गाएं पलकें॥ मातम है एहसास के घर में, बच्चे आँसू माएं प...
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जब भी कुछ फ़ुर्तसत होती है

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जब भी कुछ फ़ुर्तसत होती है। तनहाई नेमत होती है। शायर कोई और है मुझ में, पर मेरी शुहरत होती है॥ उर्दू के शेरों में बेहद, तरसीली क़ूवत होती है...
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देह मे जब तक भटकती सांस है/घनश्याम मौर्य

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महोदय, मै आप्के युग विमर्श ब्लॉग का नियमित रूप से अनुसरण करता हूँ. इस पर उत्कृष्ट एवं स्तरीय रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं. हिंदी साहित्य क...
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बुधवार, 28 अप्रैल 2010

काश मेरे पास कुछ होता सुबूत

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काश मेरे पास कुछ होता सुबूत। दे न पाया बेगुनाही का सुबूत॥ हो चुका है नज़्रे-आतश सारा जिस्म, ये सुलगती राख है ज़िन्दा सुबूत्॥ क़ाज़िए-दिल वक़...

बन्धनों में रहूँ मैं ये संभव नहीं

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बन्धनों में रहूँ मैं ये संभव नहीं॥ अनवरत साथ दूँ मैं ये संभव नहीं॥ मेरी प्रतिबद्धता का ये आशय कहाँ, झूट को सच कहूँ मैं ये संभव नहीं॥ मैं हूँ...
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मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

जब हवाएं शिथिल पड़ गयीं

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जब हवाएं शिथिल पड़ गयीं। मान्यताएं शिथिल पड़ गयीं॥ ऐसे साहित्य कर्मी जुड़े, संस्थाएं शिथिल पड़ गयीं॥ शून्य उत्साह जब हो गया, भावनाएं शिथिल प...
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कल थीं रसमय भूल गयी हैं

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कल थीं रसमय भूल गयी हैं । कविताएं लय भूल गयी हैं॥ अहंकार-गर्भित सत्ताएं, विजय परजय भूल गयी हैं॥ समय खिसकता सा जाता है, कन्याएं वय भूल गयी है...
सोमवार, 26 अप्रैल 2010

आँखें चित्र-पटल होती हैं

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आँखें चित्र-पटल होती हैं। इसी लिए चंचल होती हैं। जब भी चित्त व्यथित होता है, ये भी साथ सजल होती हैं॥ मेरी, उसकी सबकी आँखें, ठेस लगे, विह्वल ...
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गीतों ने किया रात ये संवाद ग़ज़ल से

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गीतों ने किया रात ये संवाद ग़ज़ल से। हुशियार हमें रहना है इतिहास के छल से॥ विश्वास न था मन में तो क्यों आये यहाँ आप, इक पल में हुए जाते हैं ...
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