युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

काश मेरे पास कुछ होता सुबूत

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काश मेरे पास कुछ होता सुबूत। दे न पाया बेगुनाही का सुबूत॥ हो चुका है नज़्रे-आतश सारा जिस्म, ये सुलगती राख है ज़िन्दा सुबूत्॥ क़ाज़िए-दिल वक़...

बन्धनों में रहूँ मैं ये संभव नहीं

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बन्धनों में रहूँ मैं ये संभव नहीं॥ अनवरत साथ दूँ मैं ये संभव नहीं॥ मेरी प्रतिबद्धता का ये आशय कहाँ, झूट को सच कहूँ मैं ये संभव नहीं॥ मैं हूँ...
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मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

जब हवाएं शिथिल पड़ गयीं

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जब हवाएं शिथिल पड़ गयीं। मान्यताएं शिथिल पड़ गयीं॥ ऐसे साहित्य कर्मी जुड़े, संस्थाएं शिथिल पड़ गयीं॥ शून्य उत्साह जब हो गया, भावनाएं शिथिल प...
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कल थीं रसमय भूल गयी हैं

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कल थीं रसमय भूल गयी हैं । कविताएं लय भूल गयी हैं॥ अहंकार-गर्भित सत्ताएं, विजय परजय भूल गयी हैं॥ समय खिसकता सा जाता है, कन्याएं वय भूल गयी है...
सोमवार, 26 अप्रैल 2010

आँखें चित्र-पटल होती हैं

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आँखें चित्र-पटल होती हैं। इसी लिए चंचल होती हैं। जब भी चित्त व्यथित होता है, ये भी साथ सजल होती हैं॥ मेरी, उसकी सबकी आँखें, ठेस लगे, विह्वल ...
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गीतों ने किया रात ये संवाद ग़ज़ल से

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गीतों ने किया रात ये संवाद ग़ज़ल से। हुशियार हमें रहना है इतिहास के छल से॥ विश्वास न था मन में तो क्यों आये यहाँ आप, इक पल में हुए जाते हैं ...
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रविवार, 25 अप्रैल 2010

ब्रज भाषा और अवधी का तिरस्कार क्यों

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ब्रज भाषा और अवधी का तिरस्कार क्यों अभी कल तक, यानी देवनागरी आन्दोलन से पहले तक, ब्रज और अवधी भाषाएं अपने उच्च स्तरीय साहित्य के लिए समूचे...
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शनिवार, 24 अप्रैल 2010

भाषा का शुद्धतावादी दृष्टिकोण

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भाषा का शुद्धतावादी दृष्टिकोण हिन्दी के प्रति अतिरिक्त प्रेम दर्शाने वाला आज एक वर्ग ऐसा भी है जो उर्दू और अंग्रेज़ी शब्दों के प्रति कुछ ऐस...
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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

तुम समन्दर के उस पार से।

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तुम समन्दर के उस पार से। जीत लोगे मुझे प्यार से॥ मैं तुम्हें देखता ही रहूं, तुम रहो यूं ही सरशार से॥ रौज़नों से सुनूंगा सदा, अक्स उभरेगा दीव...
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बेचैन सी हैं पलकें शायद

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बेचैन सी हैं पलकें शायद। रोई हैं बहोत आंखें शायद। कुछ देर तो बैठें साथ कभी, कुछ प्यार की हों बातें शायद्॥ जो शीश'ए दिल कल टूट गया, चुभत...
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