युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

न कोई क़िस्सा है अपना न दास्ताँ अपनी ।

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न कोई क़िस्सा है अपना न दास्ताँ अपनी । के अब तो भूल चुकी है मुझे ज़ुबाँ अपनी॥ हुई थी मेरी कभी हुस्ने-लामकाँ को तलब, जहाँ दिखायी थीं उसने निश...
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मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

मैं यूसुफ़ के लिए जीता रहा याक़ूब की सूरत ।

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मैं यूसुफ़ के लिए जीता रहा याक़ूब की सूरत । के हर लह्ज़ा मेरी आँखों में थी मह्बूब की सूरत ॥ हज़ारों बार सर कटता रहा पर दिल नहीं टूटा, ज़मीं ...
बुधवार, 23 सितंबर 2009

परिन्दे पहले के जैसी उड़ान भरते नहीं ।

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परिन्दे पहले के जैसी उड़ान भरते नहीं । के उनके उड़ने से अब आसमान भरते नहीं ॥ वो ख़्वाब क्या थे जिन्हें कोई नाम दे न सका, वो ज़्ख़्म कैसे थे ...
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मंगलवार, 22 सितंबर 2009

मेरे भी जिस्म पर कल एक सर था ।

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मेरे भी जिस्म पर कल एक सर था । मैँ उस से इस क़दर क्यों बेख़बर था ॥ मेरी सांसों में थी सहरा-नवरदी, मेरी आँखों में दरया का सफ़र था ॥ उजालों का...
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शनिवार, 29 अगस्त 2009

हमें है जाना जहाँ तक ये रास्ते जायें

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हमें है जाना जहाँ तक ये रास्ते जायें। इरादे बीच में कैसे जवाब दे जायें।। घ्ररौन्दे हम तो बनाते रहेंगे साहिल पर , बला से मौजें इन्हें अ...
बुधवार, 26 अगस्त 2009

ज़मीं के सीने का हर ज़ख्मे-तर उभारना है

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ज़मीं के सीने का हर ज़ख्मे-तर उभारना है । शजर की तर्ह जहां भी हैं सर उभारना है॥ जो पत्थरों का जिगर चीर कर निकलता है, उस आबशार का दिल में हुन...

ज़माने के लिए मैं ज़ीनते-निगाह भी था ।

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ज़माने के लिए मैं ज़ीनते-निगाह भी था । ये बात और है सर-ता-क़दम तबाह भी था॥ ख़मोशियों से मैं बढ़ता रहा सुए-मंज़िल , सियासतों का जहां जब के सद...
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

अना की जितनी भी दीवारें थीं वो तोड़ गया

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अना की जितनी भी दीवारें थीं वो तोड़ गया । मुहब्बतों से हवाओं के रुख़ को मोड़ गया ॥ वो हमसफ़र था मेरा उसपे था भरोसा मुझे, सफ़र के बीच वो क्...
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गुरुवार, 13 अगस्त 2009

जो अब्र बाइसे तस्कीने ख़ासो आम हुआ

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जो अब्र बाइसे तस्कीने ख़ासो आम हुआ । बराहे रास्त समन्दर से हम कलाम हुआ ॥ हमारी शायरी जिस दौर में थी ज़ेरे बहस , हमारे साथ ही वो दौर भी तमाम ...
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असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया ।

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असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया । के दिल ने अपना कोई हमसफ़र नहीं पाया॥ हमारी आँखों में ऐसे चेराग़ रौशन थे, अंधेरा राह में आकर ठहर न...
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