युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शनिवार, 1 अगस्त 2009

हमेँ ज़मीन पे रह्ते हुए ज़माना हुआ ।

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हमेँ ज़मीन पे रह्ते हुए ज़माना हुआ । क़यामे-ख़ुल्दे-बरीं अब तो इक फ़साना हुआ॥ ये शह्र क्या था न आबादियाँ न घर न सड़क, यहाँ वो आता गया जिस का...
शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

मुड़ के देखा था फ़क़त हो गया पत्थर नाहक़ ।

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मुड़ के देखा था फ़क़त हो गया पत्थर नाहक़ । ओढ़ना चाहता था माज़ी की चादर नाहक़ ॥ मैं था साहिल पे खड़ा उसके ख़यालात लिये, ख़ैरियत पूछने आया थ...
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सोमवार, 27 जुलाई 2009

रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये।

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रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये। मुज़महिल हुईं यादें और तुम नहीं आये ॥ चान्द की हथेली पर रख के सर मुहब्बत से, सो गयीं थकी किरनें और तुम न...
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शनिवार, 25 जुलाई 2009

असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया ।

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असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया । के दिल ने अपना कोई हमसफ़र नहीं पाया॥ हमारी आँखों के शायद चेराग़ रौशन थे , अँधेरा आया तो लेकिन ठहर...
बुधवार, 22 जुलाई 2009

मैं बारिशों से भरे बादलों को देखता हूं

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मैं बारिशों से भरे बादलों को देखता हूं । फिर अपने खेतों के तश्ना लबों को देखता हूं॥ तड़पते ख़ाक पे ताज़ा गुलों को देख्ता हूं । हया से सिमटी ...

हवाएं हैं गरीबाँ चाक हर जानिब उदासी है।

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हवाएं हैं गरीबाँ चाक हर जानिब उदासी है। मुहब्बत के लिए पागल ज़मीं मुद्दत से प्यासी है॥ शजर पर इन बहारों में नयी कोंपल नहीं फूटी, पुरा...
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मंगलवार, 21 जुलाई 2009

मकान कितने बदलता रहा मैं घर न मिला।

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मकान कितने बदलता रहा मैं घर न मिला। तमाम उम्र जो दे साथ हम-सफ़र न मिला ॥ ग़ज़ल के फ़न पे क़लम नाक़िदों के चलते रहे, मगर किसी का भी मेयार मोत...
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जिस्म के ज़िन्दाँ में उमरें क़ैद कर पाया है कौन ।

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जिस्म के ज़िन्दाँ में उमरें क़ैद कर पाया है कौन । दख़्ल क़ुदरत के करिश्मों में भला देता है कौन॥ चान्द पर आबाद हो इन्साँ उसे भी है पसन्द, उसक...
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रविवार, 19 जुलाई 2009

दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ।

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दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ। कुछ ख़ुशी, कुछ हौसला रखना बहोत मुश्किल हुआ॥ वक़्त का शैतान हावी हो चुका है इस तरह, दिल के गोशे में ...
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शनिवार, 18 जुलाई 2009

दिल खिंच रहा है फिर उसी तस्वीर की तरफ़ ।

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दिल खिंच रहा है फिर उसी तस्वीर की तरफ़ । हो आयें चलिए मीर तक़ी मीर की तरफ़ ॥ कहता है दिल के एक झलक उसकी देख लूं , उठता है हर क़दम रहे-शमशीर...
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