युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

ये ग़लत है के वहां हाशिया-आराई न थी.

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ये ग़लत है के वहां हाशिया-आराई न थी. देखती जो उसे आँखों में वो बीनाई न थी. शुक्र है उसने बयानों में तवाज़ुन बरता, कुछ भी कह देता वो उसकी कोई ...
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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

दरिया की ये आहिस्ता-ख़रामी कोई देखे.

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दरिया की ये आहिस्ता-ख़रामी कोई देखे. संजीदगिये-ज़ह्न की खूबी कोई देखे. शतरंज के मुहरों के फ़साने हुए नापैद, तस्वीर बिसातों की है उलटी कोई देखे...
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बुधवार, 22 अप्रैल 2009

वो आसमानों से रखता है हमसरी का जुनूं.

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वो आसमानों से रखता है हमसरी का जुनूं. ज़मीन-दोज़ न कर दे उसे उसी का जुनूं. जदीदियत का धुंआ भर रहा था आँखों में, ठहर सका न वहां फिक्रो--आगही...
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मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

ज्वालामुखी से आग का पानी उबल पड़ा.

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ज्वालामुखी से आग का पानी उबल पड़ा. सागर को सूंघता हुआ शोला निकल पड़ा. आकाश की लगाम समंदर के पास थी, बारिश की चाह में कोई बादल मचल पड़ा. पर्व...
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रविवार, 19 अप्रैल 2009

मन के नीरव कुञ्ज में वंशी की मीठी तान पर.

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मन के नीरव कुञ्ज में वंशी की मीठी तान पर. गोपियों के नृत्य की अनुपम छटा है शान पर. . इन कदम्बों के ये कुसुमित पुष्प गहरे हैं बहोत, कुछ चकित ...
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शनिवार, 18 अप्रैल 2009

प्रयास मन कभी ऐसे अनर्थ का न करे.

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प्रयास मन कभी ऐसे अनर्थ का न करे. के सुन के बांसुरी, गोकुल की कल्पना न करे. मैं उसके प्यार को मन में उतार बैठा हूँ, दवा ये ऐसी नहीं है जो फ़ा...
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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

धर्म की दीमक हुआ करती है वैसे भी सशक्त.

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धर्म की दीमक हुआ करती है वैसे भी सशक्त. लोकतांत्रिक कुर्सियों पर दृष्टि है इसकी सशक्त. स्वात-घाटी से कोई अनुबंध हो सकता न था, होते सत्ता में...
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रविवार, 29 मार्च 2009

मैं शिव नहीं हूँ, के गंगा जटा से निकलेगी.

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मैं शिव नहीं हूँ, के गंगा जटा से निकलेगी. मनुष्य हूँ, ये मेरी साधना से निकलेगी. नहा के आया हूँ मंदाकिनी के तट से अभी, कला संवर के ...
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शनिवार, 28 मार्च 2009

हम इतने तजस्सुस से न देखें तो करें क्या.

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हम इतने तजस्सुस से न देखें तो करें क्या. जानें तो सही, लोगों की हैं आरज़ुएं क्या. छुपती है कहाँ चेहरे पे आई हुई सुर्खी, एहसास है...
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शुक्रवार, 27 मार्च 2009

ये आँखें जब कभी इतिहास के मलबे से निकलेंगी.

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ये आँखें जब कभी इतिहास के मलबे से निकलेंगी. हमें विशवास है अलगाव के फंदे से निकलेंगी. किसी मस्जिद में तुलसीदास का बिस्तर लगा होगा, ...
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