युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

रविवार, 29 मार्च 2009

मैं शिव नहीं हूँ, के गंगा जटा से निकलेगी.

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मैं शिव नहीं हूँ, के गंगा जटा से निकलेगी. मनुष्य हूँ, ये मेरी साधना से निकलेगी. नहा के आया हूँ मंदाकिनी के तट से अभी, कला संवर के ...
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शनिवार, 28 मार्च 2009

हम इतने तजस्सुस से न देखें तो करें क्या.

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हम इतने तजस्सुस से न देखें तो करें क्या. जानें तो सही, लोगों की हैं आरज़ुएं क्या. छुपती है कहाँ चेहरे पे आई हुई सुर्खी, एहसास है...
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शुक्रवार, 27 मार्च 2009

ये आँखें जब कभी इतिहास के मलबे से निकलेंगी.

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ये आँखें जब कभी इतिहास के मलबे से निकलेंगी. हमें विशवास है अलगाव के फंदे से निकलेंगी. किसी मस्जिद में तुलसीदास का बिस्तर लगा होगा, ...
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गुरुवार, 26 मार्च 2009

रचनाओं में झलकता नहीं आत्मा का रंग.

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रचनाओं में झलकता नहीं आत्मा का रंग. भौतिक प्रदर्शनों ने है छीना कला का रंग. उद्योग के विकास के हैं रास्ते खुले, हर स्वस्थ-...

रिक्त हैं आँखों से सपने, नींद भी है लापता.

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रिक्त हैं आँखों से सपने, नींद भी है लापता. शून्य में साँसें टंगी हैं, ज़िन्दगी है लापता. कैसी नीरवता है, ध्वनियाँ तक नहीं होती...
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सोमवार, 23 मार्च 2009

घर पे ऐसे लोग आकर सांत्वना देते रहे.

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घर पे ऐसे लोग आकर सांत्वना देते रहे. चोट गहरी जो निरंतर बारहा देते रहे. आत्मा तक जिनके हर व्यवहार से घायल मिली, हम उन्हें भी निष्कपट होकर दु...

दुविधाओं में क्यों पड़ते हो, साथ चलो.

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दुविधाओं में क्यों पड़ते हो, साथ चलो. सहयात्री निश्चित अच्छे हो, साथ चलो. आत्मीय पाओगे, कुछ विशवास करो, ऐसी बातें क्यों कर...
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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

मैं हताशाओं के घेरे में नहीं था.

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मैं हताशाओं के घेरे में नहीं था. रोशनी में था, अँधेरे में नहीं था. पर्वतों सा एक भी नैराश्य मन की, संहिताओं के सवेरे में नहीं था. चक्षुओं मे...
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कहीं भी शान्ति का स्थल नहीं है.

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कहीं भी शान्ति का स्थल नहीं है. कि मन शीतांशु सा शीतल नहीं है. लिये हैं सिन्धु सा ठहराव आँखें, विचारों में कोई हलचल नहीं है. भटकता हूँ मैं क...
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बुधवार, 18 मार्च 2009

कोई वक़्त ऐसा न था जब न मुसीबत टूटी.

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कोई वक़्त ऐसा न था जब न मुसीबत टूटी. वज़'अ पर अपनी मैं क़ायम था, न हिम्मत टूटी. फ़ैसले हैं जो बनाते हैं मुक़द्दर की लकीर, कोई लेकर नहीं आता ...
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