युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

दहशतगर्दों के ख़त के जवाब में

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अखबार में यह ख़बर पढ़कर कि दहशतगर्दों ने डेकन मुजाहिदीन के फर्जी नाम से मीडिया को एक ख़त भेजा था जिसमें अपना अभीष्ट स्पष्ट किया था यह नज़्म व...
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गुरुवार, 27 नवंबर 2008

ऐसे जांबाजों को करता हूँ सलाम.

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वो सही मानों में जांबाज़ थे जाँ अपनी गँवा बैठे फ़राइज़ के लिए, ज़िन्दगी ने किया झुक-झुक के सलाम मौत ने उनकी जवांमर्दी के क़दमों पे गिराया ख़...
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नुक्ताचीनियाँ करना, सिर्फ़ हमने सीखा है.

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नुक्ताचीनियाँ करना, सिर्फ़ हमने सीखा है. मुल्क की हिफ़ाज़त की, कब किसी को पर्वा है. ******* चन्द सरफिरे आकर, दहशतें हैं फैलाते, बेखबर से रहते ...

जाने कैसी ताक़तें हैं जो नचाती हैं हमें.

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जाने कैसी ताक़तें हैं जो नचाती हैं हमें. मौत की सौदागरी करना सिखाती हैं हमें. ******* सिर्फ़ इंसानों पे क़ानूनों का होता है निफ़ाज़, हरकतें वह...
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बुधवार, 26 नवंबर 2008

इन्तक़ामोँ के ये खूनी हादसे थमते नहीं.

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इन्तक़ामोँ के ये खूनी हादसे थमते नहीं. इनके पीछे और कुछ है, ये महज़ हमले नहीं. ******* पस्तियों के इस सफ़र का ख़ात्मा होगा कहाँ, इस तरह के तो द...
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शेख ने रक्खी है तस्बीह जो ज़ुन्नार के पास.

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शेख ने रक्खी है तस्बीह जो ज़ुन्नार के पास. एक दीवार खड़ी हो गई दीवार के पास. ******* आबले, तश्ना-लबी, सोज़िशें, हिम्मत-शिकनी, यही सरमाया बचा है...
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मंगलवार, 25 नवंबर 2008

करते हो प्यार की शमओं को जलाने से गुरेज़.

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करते हो प्यार की शमओं को जलाने से गुरेज़. रोशनी बांटो, करो यूँ न ज़माने से गुरेज़. ******* मेरा घर ऊंचे मकानों ने दबा रक्खा है, धूप को भी मे...
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आग लगती है तो जल जाते हैं सब गर्दो-गुबार.

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आग लगती है तो जल जाते हैं सब गर्दो-गुबार. जिस्म की आग जला पाती है कब गर्दो-गुबार. ******* आजकल कैसी फ़िज़ा है कि सभी की बातें, इस तरह की हैं क...
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सोमवार, 24 नवंबर 2008

आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मेरा जिस्म / तनवीर सप्रा

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आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मेरा जिस्म. शायद इसी सूरत में सुकूँ पाये मेरा जिस्म. ******* आगोश में लेकर मुझे इस ज़ोर से भींचो, शीशे की तरह छान स...

हरफ़े-मादूम

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मैं कोई नगमा कोई साज़ नहीं, एक खामोशी हूँ, आवाज़ नहीं, अपने पिंजरे में लिए जागती साँसों का हुजूम क़ैद मुद्दत से हूँ मैं. क्योंकि अब मुझ में बच...
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