युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

लाख हों आंखों में आंसू, मुस्कुराते हैं वो लोग

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लाख हों आंखों में आंसू, मुस्कुराते हैं वो लोग. दूसरों के सामने यूँ गम छुपाते हैं वो लोग. ******* जान देकर जो बचाते थे वतन की आबरू, आपको, हमक...
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दूर इंसानों से दरया था रवां सब से अलग

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दूर इंसानों से दरया था रवां सब से अलग. वक़्त ने रहने दिया उसको कहाँ सब से अलग. ******* अब किसी के सामने दिल खोलते डरते है लोग, कर दिया हालात ...
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गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008

तक़द्दुस का पहेनकर खोल हैवाँ रक़्स करता है.

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तक़द्दुस का पहेनकर खोल हैवाँ रक़्स करता है। निगाहें देखती हैं यूँ भी इन्सां रक़्स करता है। ******* मेरे घर में दरिन्दे घुस गये मैं कुछ न कर पाय...
बुधवार, 29 अक्टूबर 2008

प्रोफ़ेसरी की छीछालेदर [ डायरी के पन्ने : 1]

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हिन्दी ब्लॉग-जगत का एक महत्वपूर्ण ब्लॉग है 'शब्दावली'. अचानक एक दिन मेरी दृष्टि इसपर पड़ गई. सुखद आश्चर्य हुआ यह देखकर कि एक व्यक्ति ...
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मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008

रोशनी लेके अंधेरों से लड़ोगे कैसे

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रोशनी लेके अंधेरों से लड़ोगे कैसे. ख़ुद अंधेरों में हो ये देख सकोगे कैसे। ज़ाफ़रानी नज़र आते हैं जो गुलहाए-चमन. उनमें है ज़ह्र, तो ये बात कहोगे ...
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सूरदास के रूहानी नग़मे / शैलेश ज़ैदी [क्रमशः 8]

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[50] शोभित कर नवनीत लिए. घुटुरुनि चलत रेनू तन मंडित, मुख दधि लेप किए. चारु कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए. लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन, मादक ...
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शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

दीपावली की शुभ कामनाएं

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दीप मल्लिका पर्व यह, सब को दे आनंद। मंगलमय जीवन बने, रहे न कोई द्वंद। दीप-शिखा की ज्योति में, मन का हो उल्लास। बढे परस्पर स्नेह से, भारत का ...
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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008

ज़मीन की इन कुशादा पेशानियों पे कुछ सिल्वटें मिलेंगी.

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ज़मीन की इन कुशादा पेशानियों पे कुछ सिल्वटें मिलेंगी. सदी के सफ़्फ़ाक तेवरों की, लहू भरी आहटें मिलेंगी. ******* दिलों में शुबहात के दरीचे, खुल...

गमे-दौराँ, गमे-जानाँ, गमे-जाँ है कि नहीं./ जाफ़र ताहिर

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गमे-दौराँ, गमे-जानाँ, गमे-जाँ है कि नहीं. दिल-सिताँ सिलसिलए-ग़म-ज़दगां है कि नहीं. हर नफ़स बज़्मे-गुलिस्ताँ में ग़ज़ल-ख्वाँ था कभी, हर नफ़स नाल...
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काश मैं तेरे हसीं हाथ का कंगन होता / वसी शाह

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काश मैं तेरे हसीं हाथ का कंगन होता, तू बड़े प्यार से, चाओ से बड़े मान के साथ, अपनी नाज़ुक सी कलाई में चढाती मुझको, और बेताबी से ...
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