युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

बुधवार, 9 जुलाई 2008

इस्लाम की समझ / क्रमशः 1.2

›
इस्लाम दीन है, धर्म या मज़हब नहीं दीन शब्द को सामान्यीकृत करके धर्म या मज़हब के साथ एकस्वर करना चिंतन के सारे दरवाज़ों को बंद करना है. मनुष्य...
2 टिप्‍पणियां:
मंगलवार, 8 जुलाई 2008

अज्मल अज्मली की एक ग़ज़ल

›
वक़्ते-सफ़र क़रीब है बिस्तर समेट लूँ बिखरा हुआ हयात का दफ्तर समेट लूँ फिर जाने हम मिलें न मिलें इक ज़रा रुको मैं दिल के आईने में ये मंज़र समेट...
1 टिप्पणी:
सोमवार, 7 जुलाई 2008

इस्लाम की समझ / क्रमशः 1.1

›
परिचयात्मक टिप्पणी इस स्तम्भ के अंतर्गत प्रो. शैलेश ज़ैदी के इस्लाम सम्बन्धी विचार इस उद्देश्य से प्रस्तुत किये जा रहे हैं कि इस्लाम को लेकर...
4 टिप्‍पणियां:

अमेरीकी पोते के यौमे-विलादत पर / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

›
सोचता हूँ ज़हन के सारे दरीचे खोल दूँ गुलशने-इद्राक के खुशरू बगीचे खोल दूँ जज़्बए-दिल के तिलिस्माती गलीचे खोल दूँ और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हा...
1 टिप्पणी:
रविवार, 6 जुलाई 2008

कबीर एकत्ववादी ( मुवह्हिद ) थे / प्रो. शैलेश ज़ैदी

›
कबीर ( 1425-1505 ई0 ) के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलोचकों ने विभिन्न कोणों से विचार किया है और अपनी सीमा के अनुरूप अनेक ऐसी मान्यताएं स्थापि...
गुरुवार, 3 जुलाई 2008

मुख्यधारा के साहित्यिक ठेकेदारों की अलगाववादी राजनीति / प्रो.शैलेश ज़ैदी

›
साहित्य में मुख्य धारा का प्रश्न पहले भी उठाया गया और आज भी उठाया जा रहा है. उन्नीसवीं शताब्दी के सांस्कृतिक राष्ट्रीय आन्दोलन के गर्भ से जन...
मंगलवार, 1 जुलाई 2008

बहादुरशाह ज़फ़र [1775-1862 ] की यादगार ग़ज़लें

›
[ 1 ] बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्रो-क़रार बेक़रारी तुझे ऐ दिल क...
2 टिप्‍पणियां:
सोमवार, 30 जून 2008

दिनकर ने कहा था

›
असली सत्य [ 1969, दिल्ली ] असली सत्य शून्यता है, किंतु इस सत्य को पकड़ने की कोई राह नहीं है. जिस चीज़ को तुम राह कहते हो, वह शून्यता से भिन्...

एक दीवार जो गिर गई / शैलेश ज़ैदी

›
प्रकाशकीय टिप्पणी यह कविता प्रो. शैलेश ज़ैदी ने अपनी पत्नी डॉ. शबनम ज़ैदी के निधन के बाद लिखी थी. यह मुझे 'शैलेश ज़ैदी का रचना संसार' श...
शुक्रवार, 27 जून 2008

पुरानी शराब / दाग़ देहलवी [ 1831-1905 ]

›
परिचय : नवाब मिर्ज़ा खान, जिन्हें उर्दू जगत 'दाग़ देहलवी' के नाम से जानता है, अदभुत प्रतिभा के कवि थे. दस वर्ष की अवस्था से ही उन्हो...
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
Blogger द्वारा संचालित.