युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 13 जून 2008

पसंदीदा शायरी / अहमद नदीम क़ास्मी

›
तीन ग़ज़लें [ 1 ] गुल तेरा रंग चुरा लाये हैं गुल्ज़ारों में जल रहा हूँ भरी बरसात की बौछारों में मुझसे कतरा के निकल जा मगर ऐ जाने-हया दिल की ल...

पसंदीदा शायरी / पं. ब्रिज नारायन चकबस्त

›
ग़ज़ल दर्दे-दिल पासे-वफ़ा जज़्बए-ईमाँ होना आदमीयत है यही औ यही इन्साँ होना नौ-गिरफ्तारे-बला तर्जे-फुगाँ क्या जानें कोई नाशाद सिखा दे उन्हें ना...

पुरानी शराब / मोमिन खां 'मोमिन' देहलवी

›
सात ग़ज़लें [ 1 ] असर उसको ज़रा नहीं होता रंज, राहत फज़ा नहीं होता तुम हमारे किसी तरह न हुए वरना दुनिया में क्या नहीं होता नारसी से द'आम ...
मंगलवार, 10 जून 2008

शैलेश ज़ैदी के दोहे

›
बादल से सम्पर्क मैं करता झरनों से संवाद साथ जो होती गाँव की गोरी, मैं होता आज़ाद गदराया गदराया, सुंदर सेबों का यह पेड़ मेरे गिर्द बनाता क्यों...
सोमवार, 9 जून 2008

जमीलुद्दीन आली के दोहे

›
सदियों के अम्बार में भगवन, दीजो कभी दिखाय एक ही दिन जब कोई किसी को, दुःख ना देने पाय ओ दीवार पुरानी हट जा, तेज़ है जनता धार तेरी बंसी नहीं ब...
बुधवार, 4 जून 2008

सूफ़ी दोहे / प्रो. शैलेश ज़ैदी

›
हिन्दी सूफ़ी काव्य का अध्ययन केवल प्रेमाख्यानाकों के प्रकाश में किया गया. कुछ तो जानकारी की कमी और कुछ उसके प्रति विशेष लगाव का न होना इस अध्...
मंगलवार, 3 जून 2008

हसरत मोहानी / प्रो. शैलेश ज़ैदी

›
भारतीय स्वाधीनता के इतिहास में हसरत मोहानी [ 1875-1951] का नाम भले ही उपेक्षित रह गया हो, उनके संकल्पों, उनकी मान्यताओं, उनकी शायरी में व्यक...
2 टिप्‍पणियां:
रविवार, 1 जून 2008

पुरानी शराब / मीर तकी मीर की ग़ज़लें

›
परिचय मीर तकी मीर का जन्म आगरे में 1723 ई0 में हुआ. उस समय तक उर्दू शायरी अपनी किशोरावस्था में थी. पिता की देख-रेख में शिक्षा पाकर मीर ने इश...
1 टिप्पणी:
शुक्रवार, 30 मई 2008

ज़ैदी जाफ़र रज़ा की दो ग़ज़लें

›
[ 1 ] न जाने कब से हैं सहरा कई बसाए हुए हुई हैं मुद्दतें, आंखों को मुस्कुराए हुए ये माहताब न होता, तो आसमानों पर सितारे आते नज़र और टिमटिमाए ...

परवीन शाकिर की ग़ज़लें

›
[ 1 ] आवाज़ के हमराह सरापा भी तो देखूं ऐ जाने-सुखन मैं तेरा चेहरा भी तो देखूं दस्तक तो कुछ ऐसी है के दिल छूने लगी है इस हब्स में बारिश का ...
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
Blogger द्वारा संचालित.