युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

गुरुवार, 27 मार्च 2008

ग़ज़ल : ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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मेरे मकान में थोडी सी रौशनी कम है । के आफताब की आमद यहाँ हुयी कम है ॥ मैं उसको चाहता हूँ और उससे दूर भी हूँ। कभी भरोसा है उसपर बहोत , कभी क...
मंगलवार, 25 मार्च 2008

प्रो० हरि शंकर आदेश

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प्रोफेसर हरि शंकर आदेश एक सुविख्यात कवि, लेखक और संगीतकार हैं. कैनडा, अमेरिका और ट्रीनिडाड से हिन्दी की जीवन-ज्योति नामक पत्रिका का सफल संपा...
सोमवार, 17 मार्च 2008

कबतक ? : - शैलेश ज़ैदी

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गुलाबों की हरी टहनियों को चाटते रहेंगे कबतक मिटटी से जन्मे , बदनीयत- बदहवास कीड़े ? कबतक भूखे पशुओं का भरती रहेगी पेट धरती पर लहलहाती हरी दूब...
शनिवार, 15 मार्च 2008

बरसों का सफर : कु० डॉ. मिश्कात आबिदी

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माँ......... तुम्हारी झुर्रियों में छुपा है बरसों का सफर ज़िंदगी के अनगिनत उतार-चढाव . तुम्हारी आंखों के धुंधलकों में छुपे हैं ..... ज़िंदगी ...
गुरुवार, 13 मार्च 2008

राही मासूम रज़ा की याद में (नज़्म)

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तुम्हारा नाम दर्सगाह के वरक-वरक पे है, मगर तुम्हारे दौर की, सभी इबारतें हैं आज अजनबी। कि इन इबारतों के आज , राज़दां नहीं रहे , खुलूस की रिव...
बुधवार, 12 मार्च 2008

पसंदीदा शायरी : ग़ज़ल

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आज के माहौल में खंजर बुरे लगते नहीं । हाथ लोगों के लहू से तर बुरे लगते नहीं ॥ दर्द में डूबे हुए मंज़र बुरे लगते नहीं । अब किसी को भी बुरे रह...
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बुधवार, 5 मार्च 2008

पसंदीदा शायरी : ग़ज़ल

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खामोश होगी कब ये ज़बाँ कुछ नहीं पता । बदलेगा कब निज़ामे- जहाँ कुछ नहीं पता ॥ कब टूट जाए रिश्तये-जां कुछ नहीं पता। कुछ कारे-खैर कर लो मियाँ कु...

ज्ञानेन्द्र अग्रवाल के दोहे

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भक्त और भगवान् के, बीच स्वर्ण दीवार । इसीलिए मिलता नहीं, धर्म-कर्म में सार ॥ हार गए हम द्रौपदी, हमें न आयी लाज। घर-घर में फिर क्यों न हो, दु...
मंगलवार, 4 मार्च 2008

सूरदास के रूहानी नगमे

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इस शीर्षक से सूरदास के चुने हुए एकसौ एक पदों का आज की भाषा में पद्यानुवाद शैलेश जैदी ने किया है जो पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है. हिन्द...
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रविवार, 2 मार्च 2008

कुर्सीनमा : मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सन्दर्भ में

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क्या खूब दर्सगाहे- अलीगढ है दोस्तो। बातें बनाओ, नाम कमाओ, मज़े करो॥ पढने-पढाने का है तुम्हें गर ज़रा भी शौक़। समझो गले में पड़ गया गुमनामियों ...
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