युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

कबीर-काव्य की वैष्णववादी समालोचना : लेखक - प्रो. शैलेश जैदी

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कबीर की निरंतर बढ़ती ख्याति और लोकप्रियता तथा दाशरथि राम की भगवत्ता को खुल्लम-खुल्ला नकारने की प्रवृत्ति ने गोस्वामी तुलसीदास को सबसे अधिक ठ...
बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

गाँव : पचास वर्षों बाद

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पाँच दशक के अंतराल को म...
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

शरीक न होने का अहसास।

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वहाँ गुलाबी हवाओं के पैरहन की खुशबू की / इत्र-बेजी से हैं मुअत्तर/ मगन-मगन रस-भरी फिजायें / वहाँ सुनहरे लिबास पर/ दीदाजेब याकूत से जड़े जेवरा...
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

वर्तमान कविता :

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पत्र-पत्रिकाओं की भीड़ में कविता लोकप्रियता का मोह समेटे हुए जनमानस के जिस स्तर को उद्वेलित कर रही है और जिस दिशा में चेतना-मुक्त अवस्था मे...
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