युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

शैलेश ज़ैदी की पाँच हिन्दी ग़ज़लें

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[1] यादों की दस्तक पर मन के वातायन खुल जाते है. अपने आप ही मर्यादा के सब बन्धन खुल जाते हैं. मैं उसको आवाज़ नहीं दे पाता लौट के आ जाओ, दिल क...
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2008

ग़ज़ल : ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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उसकी आंखों की इबारत साफ थी। मैं नहीं समझा, शिकायत साफ थी॥ क्या गिला करता मैं उसके ज़ुल्म का। उसकी जानिब से तबीअत साफ थी ॥ छुप के तन्हाई में क...
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