युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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मंगलवार, 12 अगस्त 2008

हिन्दी ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी

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चांदनी की ओट में श्वेताम्बरा आयी थी कल था ये शायद स्वप्न कोई अप्सरा आयी थी कल स्नेह पर संदेह उसके मैं करूँ, सम्भव नहीं, मेरे दुःख पर आँख उसक...
बुधवार, 23 जुलाई 2008

शैलेश जैदी की नई ग़ज़लें

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[ 1 ] अदृश्य थे, मगर थे बहुत से सहारे साथ. निश्चिन्त हो गया हूँ कि तुम हो हमारे साथ. मीठा भी और खारा भी पानी का है स्वभाव, सुनता हूँ मैं समु...
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