युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

हिन्दी ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी

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मैं कि था निःशब्द फिर भी कोई मुझमें था मुखर। मेरे अन्तस में थी मेरी अपनी ही पीड़ा मुखर ॥ कल्पना मेरी बना लेती है आकृतियाँ कई, रंग मैं जो भी...
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