युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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शनिवार, 8 नवंबर 2008

शैलेश ज़ैदी के दोहे

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देख लिए हमने सभी, शीत-ग्रीष्म के रूप। जीवन के अवसान में, क्या छाया क्या धूप। सोने का मृग ले गया, रामचंद्र को दूर। सुनकर रावण-याचना, सीता थीं...
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