युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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गुरुवार, 11 सितंबर 2008

दिनेश शुक्ल के फागुनी दोहे

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रोम-रोम केसर घुली, चंदन महके अंग। कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग। रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग। साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग...
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