युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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रविवार, 24 अगस्त 2008

वो फूल अब कहाँ / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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जिन में लपक हो शोलों की वो फूल अब कहाँ बेकार ज़ाया करते हो तुम रोज़ो-शब कहाँ इस दौर का खुलूस भी है मस्लेहत-शनास मिलते हैं लोग रोज़, मगर बे-सबब...
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