युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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रविवार, 31 अगस्त 2008

रिन्दों के लब पे / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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रिन्दों के लब पे मय की ग़ज़ल का खुमार था मयखाना आज रात बहोत बे-क़रार था फूलों के साथ रात में क्या हादसा हुआ हर फूल सुब्ह होने पे क्यों अश्कब...
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