युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / अब कहाँ मज़हब लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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बुधवार, 5 नवंबर 2008

अब कहाँ मज़हब, कहाँ इंसानियत, कैसा खुलूस.

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अब कहाँ मज़हब, कहाँ इंसानियत, कैसा खुलूस. अब तो आगोशे-सियासत में है हम सब का खुलूस. ******* आ गई है अब खुदाई भी उसीके हाथ में, उसकी बातों मे...
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