युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

हो चुकी हैं राख जलकर बस्तियाँ ऐसी भी हैं

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हो चुकी हैं राख जलकर, बस्तियाँ ऐसी भी हैं। आँख हो जाती हैं नम महरूमियाँ ऐसी भी हैं॥ झीने आँचल में समेटें धूप ये मुम्किन नहीं, बर्फ़ सी चुभती...
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