युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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गुरुवार, 24 जून 2010

खो गया मैं ये किस कल्पना में

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खो गया मैं ये किस कल्पना में। चाँद ही चाँद हैं हर दिशा में॥ मैं अमावस से सुबहें तराशूँ, घोल दो चाँदनी तुम हवा में॥ मैं पिघलता रहूं मोम बनकर...
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