युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / नासिर काज्मी / आराइशे-ख़याल भी हो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / नासिर काज्मी / आराइशे-ख़याल भी हो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

आराइशे-ख़याल भी हो दिल-कुशा भी हो. / नासिर काज्मी

›
आराइशे-ख़याल भी हो दिल-कुशा भी हो. वो दर्द अब कहाँ जिसे जी चाहता भी हो. ये क्या कि रोज़ एक सा गम एक सी उमीद, इस रंजे बे-खुमार की अब इन्तेहा ...
1 टिप्पणी:
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
Blogger द्वारा संचालित.