युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / हाँ तबीअत आजकल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / हाँ तबीअत आजकल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मंगलवार, 2 मार्च 2010

हाँ तबीअत आजकल मेरी परीशाँ है बहोत्

›
हाँ तबीअत आजकल मेरी परीशाँ है बहोत्। ठहरी-ठहरी ज़िन्दगी लगती परीशाँ है बहोत्॥ आसमानोँ पर कहीं सुनता हूं अनजाना सा शोर, चाँद तारों की कोई बेट...
3 टिप्‍पणियां:
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
Blogger द्वारा संचालित.