युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / यहाँ शायद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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बुधवार, 10 मार्च 2010

यहाँ शायद मुकम्मल कुछ नहीं है

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यहाँ शायद मुकम्मल कुछ नहीं है। मसाएल हैं, मगर हल कुछ नहीं है॥ मैँ इन्साँ अब कहाँ, बुत बन चुका हूं, मेरे सीने मेँ हलचल कुछ नहीँ है॥ वो जिन बो...
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