युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / कभी कमी कोई लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

कभी कमी कोई आयी न इन ख़ज़ानों में

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कभी कमी कोई आयी न इन ख़ज़ानों में। के दौलतें हैं बहोत इश्क़ के फ़सानों में ॥ मैं ख़िरमनों की तबाही का ज़िक्र क्या करता, ये बात ग़र्म बहोत थ...
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