युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

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रविवार, 22 जून 2008

पसंदीदा शायरी / शहरयार

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पाँच ग़ज़लें [ 1 ] जिंदगी जैसी तमन्ना थी, नहीं, कुछ कम है हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है अपने नक़्...
बुधवार, 18 जून 2008

आंखों से जुड़ी कुछ ग़ज़लें / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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सावन की घटा बन के बरसती हुई आँखें भीगा हुआ मौसम हैं ये भीगी हुई आँखें ख़्वाबों में उतर आती हैं चुप-चाप दबे पाँव दोशीज़ए-माजी की चमकती हुई आँख...
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